टैरिफ का झटका या ट्रेड डील का झूला? अमेरिका से सौदा होगाा?

सैफी हुसैन
सैफी हुसैन, ट्रेड एनालिस्ट

9 जुलाई की तारीख अब केवल कैलेंडर में नहीं, बल्कि भारतीय एक्सपोर्टर्स की धड़कन में दर्ज हो चुकी है। क्योंकि अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता नहीं होता, तो 1 अगस्त से 26% का अमेरिकी टैरिफ फिर से गदा लेकर खड़ा हो जाएगा। और भारतीय माल को ‘सस्ता और टिकाऊ’ से ‘महंगा और बचाओ!’ की श्रेणी में डाल देगा।

समझौता नहीं हुआ तो क्या होगा?

अगर ये अंतरिम डील नहीं हो पाती, तो कुछ खास सेक्टर्स को झटका लगेगा:

  • ऑटोमोबाइल सेक्टर: जहां अब तक भारत अमेरिका में SUV भेजकर शेर बनता था, अब मेक्सिको 0% टैरिफ पर उसे ‘माइलेज’ दिखा देगा।

  • टेक्सटाइल उद्योग: कॉटन का राजा भारत भी अमेरिका में सिल्क-सूट बेचते हुए सूटबूट वालों के टैक्स से घिर सकता है।

और हां, इलेक्ट्रॉनिक्स, जेम्स-ज्वेलरी, ये सब भी कस्टम कास्टिंग में फंस सकते हैं।

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बावजूद इसके, इंडस्ट्री कह रही है: “No Deal? No Cry!”

“सौदा तब होगा, जब वो हमारे राष्ट्रीय हित में होगा। सिर्फ अमेरिका के फायदे के लिए नहीं।”

ये लाइनें बताती हैं कि अब भारत सिर्फ ‘वर्ल्ड का ऑफिस बॉय’ नहीं, बल्कि ‘डील टेबल पर बराबरी का पार्टनर’ है।

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ट्रेड डीलें इंस्टेंट नूडल्स नहीं होतीं। ये 3 मिनट में Ready-to-Eat नहीं, बल्कि 3 साल में Ready-to-Sign होती हैं। राजनीतिक और रणनीतिक संदेश भी साथ चल रहा है – क्योंकि ये सिर्फ व्यापार की बात नहीं, भरोसे की बात भी है।

क्या भारत तैयार है?

बिलकुल, भारत की तैयारी का स्तर अब “डील हो गई तो ठीक, नहीं तो भी ठीक” वाली है। सरकार ने उद्योगों के साथ विचार-विमर्श कर अपना होमवर्क कर लिया है।

क्यों जरूरी है ये FTA?

  • 26% टैरिफ से बचाव

  • भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा बढ़ाना

  • अमेरिका में नई मार्केट ग्रोथ

  • रणनीतिक साझेदारी को मजबूती

परंतु, सरकार ‘जल्दबाज़ी में जलेबी नहीं बनाना चाहती’। शर्तें फेयर होनी चाहिए।

अगर डील नहीं होती तो…?

  • भारतीय कंपनियों को री-प्राइसिंग और नई मार्केट स्ट्रेटजी पर जाना होगा।

  • कुछ MSMEs को कॉस्ट कटिंग का रूट पकड़ना पड़ सकता है।

  • जबकि चीन, मेक्सिको, वियतनाम जैसे देश इस मौके को हाई फाइव करने के लिए तैयार होंगे।

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